मॉस्को: रूस और यूक्रेन युद्ध के एक साल बाद अब भारत में विशेषज्ञ कुछ सवाल उठाने लगे हैं। वो रूस की क्षमताओं पर आशंका जता रहे हैं। पश्चिमी देशों की तरफ से प्रतिबंधों की वजह से रूस पर खासा असर पड़ा है। उसे लगातार निर्यात में घाटे का सामना करना पड़ रहा है। भारत जो उसका सबसे बड़ा रक्षा साझीदार है, उसे डिफेंस सिस्टम की सप्लाई कैसे जारी रखी जाए, इस पर रूस विचार कर रहा है। रूसी सरकार के रक्षा और बैंकिंग सूत्रों की अगर मानें तो पेमेंट से जुड़ी समस्या को लेकर सबसे बड़ी चिंता है। अखबार द हिंदू की मानें तो भारत और रूस इस समस्या को सुलझाने की तरफ देख रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो भारत रूबल के प्रयोग को लेकर झिझक रहा है जबकि रूस को पेमेंट अब उसकी मुद्रा रूबल में चाहिए।
एस-400 की सप्लाई अटकी
पिछले दिनों ऐसी मीडिया रिपोर्ट आई थी जिसमें S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी पर सवाल खड़े हुए थे। भारत को इस सिस्टम की दो बची हुई रेजीमेंट अभी मिलनी बाकी हैं। भारत ने साल 2018 में रूस के साथ हुई 5.4 बिलियन डॉलर वाली डील के साथ इस सिस्टम की डील फाइनल की थी। 21 मार्च को लोकसभा में पेश की गई रक्षा संबंधी स्थायी समिति (2022-23) की 34वीं रिपोर्ट के मुताबिक कुछ रेजीमेंट की डिलीवरी अभी नहीं हो सकी है। रूसी अधिकारियों की तरफ से इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया गया था
कई डील को पूरा करने की कोशिशें
रूस की रक्षा उत्पाद बनाने वाली कंपनी रोस्टेक और एस -400 सिस्टम के निर्माता वीकेओ अल्माज-एंटी की तरफ से इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया गया है। कुछ रूसी अधिकारी यह मानते हैं कि जब भारत के साथ व्यापार की बात आती है तो भुगतान एक मुद्दा बना रहता है। रूस वर्तमान में भारत के साथ पहले साइन किए गए कई अहम समझौतों को पूरा करने में लगा है। इसमें S-400 सिस्टम और दो प्रोजेक्ट 11356 फ्रिगेट की डिलीवरी शामिल है। साथ ही कुछ और डील्स जिनमें मौजूदा सुखोई-30 MKI की अतिरिक्त खरीद के साथ ही इसका मॉर्डनाइजेशन और MIG-29 का एडवांस्डमेंट शामिल है।
विशेषज्ञों की मानें तो रूस का मानना है कि उसकी मुद्रा रूबल में पेमेंट हासिल करने का बेस्ट होगा और भारत फिलहाल ऐसा करने में सक्षम नहीं है। स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, हायर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के रिसर्च फेलो अलेक्सी जखारोव ने रूबल पेमेंट में दो बड़ी समस्याओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पहले तो भारत का फाइनेंस सेक्टर धीरे-धीरे नए तंत्र सिस्टम को अपना रहा है और ऐसे में वह नए पेमेंट सिस्टम को लेकर चिंतित है। साथ ही रूसी रूबल में विश्वास की कमी है। अप्रैल 2022 तक भारत और रूस का कुल आयात 8.5 अरब डॉलर तक था। फरवरी 2023 में इसमें इजाफा हुआ और यह 41.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया जोकि तेल के आयात की वजह से था। 41 अरब डॉलर की पूरी राशि अब भारत में अधिकृत डीलर बैंकों के साथ रूसी बैंकों द्वारा खोले गए वोस्ट्रो खातों में जमा हो गई है।
कम हुई रूस की हिस्सेदारी
विशेषज्ञों की मानें तो भारत रूबल के प्रयोग को लेकर झिझक रहा है। उसका मानना है कि इसका सही मूल्यांकन करना लगभग असंभव है। इसलिए भारत की रूबल में कोई विशेष रुचि नहीं है और वह रुपए में पेमेंट करना चाहता है। रूस से एक प्रतिनिधिमंडल भारत आने वाला है और इस मुद्दे पर 17-18 अप्रैल को चर्चा हो सकती है। स्वीडिश थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 2012-17 में 69% से गिरकर 2017-21 में 46% हो गई, जबकि मॉस्को अभी भी नई दिल्ली के लिए प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।