जानिए कैसे चुने जाते हैं नगर महापौर और उनकी जिम्मेदारियां और अधिकार
हर महानगर अपनी सुशासन व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक नगर निगम की स्थापना करता है। नगर निगम महानगर क्षेत्र में होने वाले सभी दायित्वों की पूर्ति की देखरेख करता है जैसे नगर की साफ-सफाई आदि। क्योंकि इतने बड़े क्षेत्र की देखभाल नगर निगम के जिम्मे है तो उसकी निगरानी और समुचित संचालन के लिए प्रत्येक नगरपालिका में एक महापौर (मेयर) नियुक्त होता है, जिसे उस नगर का पहला नागरिक भी कहते हैं।
नगरसेवकों के बीच औपचारिक रूप से चुने गए एक शहर के मेयर के पास एक औपचारिक पद होता है। नगर निगम के नगर आयुक्त और उनके कर्मचारी जो आईएएस संवर्ग से आते हैं और राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, कार्यकारी, वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों को नियंत्रित करते हैं।
महापौर को नगर का प्रशासक भी कहा जाता है। इनके लिए प्रत्येक 5 वर्ष में नगर निगम का चुनाव होता है इस चुनाव में कई पार्षद चुने जाते हैं। इन्हीं पार्षदों में से कोई एक पार्षद 1 वर्ष के लिए महापौर के पद पर चुन लिया जाता है। पार्षदों का चुनाव आम जनता के चुनाव द्वारा निर्धारित होता है। शहर के महापौर के चुनाव की विधि और उनका कार्यकाल भारत के प्रत्येक शहर के लिए भिन्न है। उदाहरण हेतु बेंगलुरु (कर्नाटक) में चुनाव प्रक्रिया एक वर्ष के कार्यकाल के साथ अप्रत्यक्ष है, मुंबई (महाराष्ट्र) में यह 2.5 साल के कार्यकाल के साथ अप्रत्यक्ष चुनाव का अनुसरण करती है और भोपाल (मध्य प्रदेश) पांच साल के कार्यकाल के साथ सीधे निर्वाचित महापौर का अनुसरण करती है।
भारतीय राज्यों हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और ओडिशा ने शहरों के नागरिकों द्वारा महापौरों के सीधे चुनाव के लिए नगर पालिकाओं को नियंत्रित करने वाले अधिनियमों में संबंधित प्रावधान बनाए थे। भारत में शहरों के महापौरों का कार्यकाल 1 वर्ष से 5 वर्ष तक भिन्न होता है।
1) स्थानीय नागरिक निकाय को नियंत्रित करना।
2) भिन्न-भिन्न शहरों में अलग-अलग निश्चित कार्यकाल।
3) शहर का प्रथम नागरिक।
4) औपचारिक समय के दौरान शहर की गरिमा का प्रतिनिधित्व और उसे बनाए रखना और
5) कार्यात्मक क्षमता में निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ नागरिक सदन की चर्चाओं की अध्यक्षता करना।
6) महापौर की भूमिका स्थानीय शहर और देश से बहुत आगे है क्योंकि शहर में एक विदेशी गणमान्य व्यक्ति की यात्रा के दौरान निगम की बैठकों में पीठासीन अधिकारी के रूप में उन्हें राज्य सरकार द्वारा सम्मानित अतिथि के लिए नागरिकों का स्वागत करने और उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
7) सरकारी, नागरिक और अन्य सामाजिक कार्यों में प्रमुखता।
1. 21 वर्ष या उससे अधिक आयु
2. न्यूनतम दसवीं उत्तीर्ण होना जरूरी
3. जनता द्वारा निर्वाचित पार्षद
मेयर अथवा महापौर के अधिकार
महापौर परिषद का एक नेता होता है, जो विधायी और कार्यात्मक दोनों ही भूमिकाओं को निभाता है| स्थानीय सरकार अधिनियम 1989 की धारा 73 में विधायी आवश्यकता बताई गई है| अधिनियम में बताया गया है कि महापौर न केवल सभी नगरपालिका कार्यवाही में प्राथमिकता लेता है, बल्कि वह परिषद की सभी बैठकों की अध्यक्षता भी करता है |
1. शहर के नगर निगम में होने वाले प्रत्येक कार्य महापौर की सहमति से किए जाते हैं|
2. सदन में एजेंडे को महापौर की सहमति से रखा जाता है |
3. महापौर को शहर के विकास कार्य के लिए लगभग दो करोड़ की राशि मिलती है, जो वह अपने वार्ड को छोड़ कर शहर के किसी भी क्षेत्र में खर्च कर सकता है |
चुनाव और कार्यकाल
महापौर को नगर का प्रशासक भी कहा जाता है। इनके लिए प्रत्येक 5 वर्ष में नगर निगम का चुनाव होता है इस चुनाव में कई पार्षद चुने जाते हैं। इन्हीं पार्षदों में से कोई एक पार्षद 1 वर्ष के लिए महापौर के पद पर चुन लिया जाता है। पार्षदों का चुनाव आम जनता के चुनाव द्वारा निर्धारित होता है। शहर के महापौर के चुनाव की विधि और उनका कार्यकाल भारत के प्रत्येक शहर के लिए भिन्न है। उदाहरण हेतु बेंगलुरु (कर्नाटक) में चुनाव प्रक्रिया एक वर्ष के कार्यकाल के साथ अप्रत्यक्ष है, मुंबई (महाराष्ट्र) में यह 2.5 साल के कार्यकाल के साथ अप्रत्यक्ष चुनाव का अनुसरण करती है और भोपाल (मध्य प्रदेश) पांच साल के कार्यकाल के साथ सीधे निर्वाचित महापौर का अनुसरण करती है।
भारतीय राज्यों हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और ओडिशा ने शहरों के नागरिकों द्वारा महापौरों के सीधे चुनाव के लिए नगर पालिकाओं को नियंत्रित करने वाले अधिनियमों में संबंधित प्रावधान बनाए थे। भारत में शहरों के महापौरों का कार्यकाल 1 वर्ष से 5 वर्ष तक भिन्न होता है।
महापौर की भूमिका
1) स्थानीय नागरिक निकाय को नियंत्रित करना।
2) भिन्न-भिन्न शहरों में अलग-अलग निश्चित कार्यकाल।
3) शहर का प्रथम नागरिक।
4) औपचारिक समय के दौरान शहर की गरिमा का प्रतिनिधित्व और उसे बनाए रखना और
5) कार्यात्मक क्षमता में निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ नागरिक सदन की चर्चाओं की अध्यक्षता करना।
6) महापौर की भूमिका स्थानीय शहर और देश से बहुत आगे है क्योंकि शहर में एक विदेशी गणमान्य व्यक्ति की यात्रा के दौरान निगम की बैठकों में पीठासीन अधिकारी के रूप में उन्हें राज्य सरकार द्वारा सम्मानित अतिथि के लिए नागरिकों का स्वागत करने और उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
7) सरकारी, नागरिक और अन्य सामाजिक कार्यों में प्रमुखता।
महापौर की योग्यता
1. 21 वर्ष या उससे अधिक आयु
2. न्यूनतम दसवीं उत्तीर्ण होना जरूरी
3. जनता द्वारा निर्वाचित पार्षद
मेयर अथवा महापौर के अधिकार
महापौर परिषद का एक नेता होता है, जो विधायी और कार्यात्मक दोनों ही भूमिकाओं को निभाता है| स्थानीय सरकार अधिनियम 1989 की धारा 73 में विधायी आवश्यकता बताई गई है| अधिनियम में बताया गया है कि महापौर न केवल सभी नगरपालिका कार्यवाही में प्राथमिकता लेता है, बल्कि वह परिषद की सभी बैठकों की अध्यक्षता भी करता है |
महापौर के शक्तियों व अधिकार के बारे में
1. शहर के नगर निगम में होने वाले प्रत्येक कार्य महापौर की सहमति से किए जाते हैं|
2. सदन में एजेंडे को महापौर की सहमति से रखा जाता है |
3. महापौर को शहर के विकास कार्य के लिए लगभग दो करोड़ की राशि मिलती है, जो वह अपने वार्ड को छोड़ कर शहर के किसी भी क्षेत्र में खर्च कर सकता है |