पीएम मोदी का अमेरिका दौरा कई मायनों में बहुत अहम है। रक्षा क्षेत्र में कई अहम समझौतों की उम्मीद है। भारत में लड़ाकू विमानों के इंजन को संयुक्त रूप से बनाने का ऐलान गेमचेंजर साबित हो सकता है। भारत धीरे-धीरे हथियारों को लेकर रूस पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है।
इंद्राणी बागची
अपने पहले स्टेट विजिट पर अमेरिका गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वॉशिंगटन में राष्ट्रपति जो बाइडन ने गर्मजोशी से स्वागत किया। हाथों में हाथ डाले बाइडन और मोदी। कभी साथ ठहाके लगाते तो कभी एक दूसरे को गले लगाते। ये गर्मजोशी भारत-अमेरिका रिश्तों के नए दौर की तस्वीर है। रिश्तों नई इबारत की तस्वीर है। पीएम मोदी का ये अमेरिका दौरा गेमचेंजर होने जा रहा है।
बमुश्किल साल भर पहले रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत गंभीर आलोचनाओं का सामना कर रहा है। उसे 'स्वार्थी' और 'मौकापरस्त' कहा जा रहा था। इस हफ्ते भारत को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक और उतनी ही गंभीर चर्चा रही। चर्चा इस बात की कि रूस से तेल खरीद पर 'विलेन' कहे जा रहे भारत ने पश्चिम को उस आर्थिक संकट से 'बचाया' जिसका आना तय माना जा रहा था। पीएम मोदी के अमेरिका के पहले स्टेट विजिट पर तकनीक, रक्षा और क्लाइमेट चेंज जैसे तमाम मुद्दों की चर्चा है। पीएम मोदी हमेशा की तरह 'मूल्यों' की बात करेंगे लेकिन साथ में भारत के हितों का लिफाफा भी थमाएंगे। इस दौरे से भारत-अमेरिका संबंधों का एक नया चैप्टर शुरू होने जा रहा है।
रूस पर कम होगी निर्भरता
लड़ाकू विमानों के इंजन को लेकर हुआ ऐलान गेमचेंजर बन सकता है। अमेरिका अपने इस 'क्राउन ज्वेल' टेक्नॉलजी को भारत के साथ शेयर कर रहा है, ये यह बताने के लिए काफी है कि नई दिल्ली की उसके लिए क्या अहमियत है। भारत भी अपने डिफेंस स्ट्रक्चर में विविधता के जरिए इस मौके को भुनाने की कोशिश में है ताकि उसकी रूस पर निर्भरता कम हो। अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन के अलावा भारत जर्मनी से डीजल सबमरीन खरीदने पर विचार कर रहा है। अगले महीने पीएम मोदी के फ्रांस दौरे पर डिफेंस से जुड़े कुछ और ऐलान हो सकते हैं। जनरल इलेक्ट्रिक के जेट इंजनों की बदौलत भारत के लड़ाकू विमान लंबे वक्त तक अमेरिका की तकनीक से लैस रहेंगे। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुल्लिवन तो पहले ही कह चुके हैं कि पीएम मोदी के इस स्टेट विजिट से दोनों देशों की डिफेंस पार्टनरशिप नई ऊंचाई को पहुंचेगी। अमेरिकी कांग्रेस जेट इंजन की बिक्री पर लगी पाबंदियों को जैसे ही हटाएगी, एक नई नजीर उभरेगी।
हिंद प्रशांत क्षेत्र और जियोपॉलिटिक्स
डिफेंस सेक्टर में भारत-अमेरिका की इस गर्मजोशी की वजह सिर्फ रूस-यूक्रेन युद्ध नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह हिंद प्रशांत क्षेत्र का जियोपॉलिटिक्स है। भारत AUKUS टेक पार्टनरशिप का अभी मेंबर नहीं है, लेकिन वह इससे जुड़ना चाहता है। लेकिन क्वॉड देश (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) भी और ज्यादा डिफेंस टेक्नॉलजी को एक दूसरे से शेयर करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
डिफेंस सेक्टर में भारत-अमेरिका की इस गर्मजोशी की वजह सिर्फ रूस-यूक्रेन युद्ध नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह हिंद प्रशांत क्षेत्र का जियोपॉलिटिक्स है। भारत AUKUS टेक पार्टनरशिप का अभी मेंबर नहीं है, लेकिन वह इससे जुड़ना चाहता है। लेकिन क्वॉड देश (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) भी और ज्यादा डिफेंस टेक्नॉलजी को एक दूसरे से शेयर करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
भारत के कई शहरों में O-RAN (ओपन रैंडम एक्सेस नेटवर्क्स) का पायलट प्रोजेक्ट 2021 में हुए क्वॉड शिखर सम्मेलन के एक अहम मकसद को पूरा करने की दिशा में बड़ा कदम है। अगर भारत और अमेरिका दोनों एक साथ इसमें कामयाब होते हैं तो 5G और 6G हार्डवेयर के लिए चीन की हुवावे पर निर्भरता खत्म होगी। इससे ग्लोबल साउथ के देशों को विकल्प मुहैया कराएगा जिनके पास फिलहाल चीन पर निर्भरता के अलावा कोई चारा नहीं है। इससे ऐसा टेलिकॉम इकोसिस्टम बनेगा जो 'भरोसेमंद' हो।
क्लीन एनर्जी, सेमीकंडक्टर के लिए सप्लाई
क्या भारत क्रिटिकल मिनरल्स पर अमेरिका की अगुआई वाले ग्लोबल अलायंस का हिस्सा बन सकता है? भारत ऐसा चाहता है। दरअसल क्लीन एनर्जी, टेलिकॉम, सेमीकंडक्टर वगैरह के लिए भारत को भरोसेमंद सप्लाई के साथ-साथ क्रिटिकल मिनरल्स की प्रोसेसिंग और माइनिंग के लिए भरोसेमंद तकनीक के सोर्स की भी जरूरत है। उदाहरण के तौर पर भारत के जम्मू में लीथियम का विशाल भंडार मिला है लेकिन उसका इस्तेमाल करने के लिए उसे तकनीक और दूसरे सप्लाई की जरूरत पड़ेगी।
क्लीन एनर्जी, सेमीकंडक्टर के लिए सप्लाई
क्या भारत क्रिटिकल मिनरल्स पर अमेरिका की अगुआई वाले ग्लोबल अलायंस का हिस्सा बन सकता है? भारत ऐसा चाहता है। दरअसल क्लीन एनर्जी, टेलिकॉम, सेमीकंडक्टर वगैरह के लिए भारत को भरोसेमंद सप्लाई के साथ-साथ क्रिटिकल मिनरल्स की प्रोसेसिंग और माइनिंग के लिए भरोसेमंद तकनीक के सोर्स की भी जरूरत है। उदाहरण के तौर पर भारत के जम्मू में लीथियम का विशाल भंडार मिला है लेकिन उसका इस्तेमाल करने के लिए उसे तकनीक और दूसरे सप्लाई की जरूरत पड़ेगी।