Bihar News: कांग्रेसयुक्त गठबंधन की बैठक टाल दी गई। 12 जून की बजाए अब नई तारीख आई है। हालांकि, पक्का नहीं है। इसके टाले जाने की सबसे बड़ी वजह बताई गई कि राहुल गांधी और खरगे शामिल नहीं हो पाते। मगर इसके और भी कई वजहें हैं। जिसमें नियोजित शिक्षकों का प्रदर्शन भी बड़ा कारण है।
पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम के 'दिन' नहीं बन रहे हैं। हर बार कुछ न कुछ रोड़ा आ ही जा रहा है। नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम की तिथि को हर बार आगे बढ़ा रहे हैं। इसके पहले विपक्षी एकता की बैठक 19 मई तय की गई थी। मगर, कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की व्यस्तता के कारण टाली गई। फिर तय हुआ कि मई के अंत में किया जाए। लेकिन ये भी नहीं हो पाया और अंत में 12 जून की तिथि घोषित कर दी गई। अब कांग्रेस आलाकमान की वजह से 12 जून की बैठक को भी टाल दिया गया।
नीतीश को कांग्रेस की इतनी जरूरत क्यों?
दरअसल, नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की मुहिम के नाम पर केंद्र सरकार से नरेंद्र मोदी को अपदस्थ करने का बीड़ा उठाया था। उसी दिन उन्होंने संकल्प लिया था कि वे कांग्रेस युक्त गठबंधन चाहते हैं, न कि थर्ड फ्रंट। इस बात को लेकर तेलंगाना के सीएम केसी राव से भी उनकी बात नहीं बनी। वो मुलाकात विपक्षी एकता की मुहिम पर किसी दल के इंकार के साथ शुरू हुआ। नीतीश कुमार कांग्रेस युक्त गठबंधन को लेकर अड़े रहे। चुकि नीतीश कुमार जानते हैं कि भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी को सत्ता से बेदखल करना है तो उसे किसी राष्ट्रीय दल की छतरी के तले आना होगा। इसलिए वे कांग्रेस के साथ गठबंधन की चाह लिए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिले। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से मुलाकात किए। वो भी इस फॉर्मूले के साथ कि क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों को राज्य के चुनाव में तरजीह दी जाएगी और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को थोड़ी विशेष हिस्सेदारी मिले। परंतु, इसके लिए एक बार कांग्रेस के साथ वैसे दलों को एक मंच पर साथ लाना था, जो कांग्रेस विरोध की राजनीति के साथ सत्ता में आए हैं।
12 जून को होनेवाली बैठक इस वजह से टली
कांग्रेस ने 12 जून की बैठक के बारे में पहले ही स्पष्ट कर दी थी। इनके वरीय नेता जयराम रमेश ने संवाददाताओं से बातचीत में ये जानकारी दी थी कि कोई प्रतिनिधि 12 जून की बैठक में हिस्सा लेगा। वजह के बारे में बताया गया कि राहुल गांधी 12 तक अमेरिका यात्रा पर हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की भी अपनी व्यस्तता है। ऐसे में 12 जून को बैठक होती है तो कांग्रेस की ओर से इन दोनों नेताओं की उपस्थिति नहीं होगी। साथ ही एक सूचना ये भी थी कि डीएमके नेता और तमिलनाडु के सीएम स्टालिन भी 12 जून को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में व्यस्त थे।
बैठक में न जाने की वजह कुछ और थी?
राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली भरी जीत के बाद पार्टी का मनोबल ऊंचा है। बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भाजपा को अकेले दम पर परास्त किया जा सकता है। एक दूसरी वजह भी थी कि पंजाब और दिल्ली के कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने केजरीवाल के साथ एक मंच पर आने का जबरदस्त विरोध किया है। वैसे भी कांग्रेस नेता काफी असहज महसूस कर रहे हैं। इसलिए तत्काल तो इतना दबाव था कि 12 जून की बैठक के लिए कांग्रेस को ना ही कहना था।
शिक्षक विरोध भी तो कारण नहीं?
बिहार में शिक्षक नियोजन को लेकर नई नियमावली का जबरदस्त विरोध नियोजित शिक्षक और नए अभ्यर्थी कर रहे हैं। अभी प्रमंडल से लेकर जिला स्तर तक विरोध प्रदर्शन खत्म हुआ है। अब पश्चिम चंपारण के भितिहरवा से जनसंपर्क अभियान की बात शुरू हुई है। लेकिन इस बीच ऑल इंडिया एजुकेशनल फेडरेशन के सचिव शैलेंद्र कुमार शर्मा ने एक नया प्रस्ताव रखा है। इससे सरकार की भी चिंता बढ़ गई। इसके मुताबिक 10 जून को भितिहरवा (पूर्वी चम्पारण) जाने के कार्यक्रम को बदल दिया गया। रणनीति ये थी कि 12 जून को पटना को शिक्षकों से पाट दिया जाए। बिहार सरकार को शिक्षक नियमावली 2023 को वापस लेने के लिए स्मार पत्र दिया जाए। बहरहाल, 12 जून की बैठक के टाले जाने के कई कारण हैं। इनके निदान के लिए वक्त तो जरूरी है। सो, अब एक नई तारीख उभरकर सामने आई है। वो तिथि है 23 जून। माना जा रहा है कि 23 जून को कांग्रेस युक्त गठबंधन के नेता एक मंच पर दिखेंगे।