G20: भारत की G20 अध्यक्षता में मूलभूत साक्षरता एजेंडा
भारत की G20 अध्यक्षता में शेरपा ट्रैक के अंतर्गत शिक्षा कार्य समूह (ईडीडब्ल्यूजी) में शिक्षा और मूलभूत साक्षरता पर विशेष फोकस किया जाना है। दुनियाभर में मूलभूत साक्षरता के स्तर में भारी असमानता के कारण सभी तक मूलभूत और समग्र शिक्षा के लक्ष्य में रुकावट आई है और कोरोना महामारी तथा वैश्विक आर्थिक सुस्ती की वजह से इसमें और अधिक गिरावट देखने को मिली है, विशेष रूप से अल्पविकसित और विकासशील देशों पर इसका ज्यादा बुरा असर पड़ा है। वर्तमान में G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत के पास इस महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौती से लड़ने का अवसर है। दुनिया को इस समस्या से बाहर निकालने के लिए G20 समूह की भूमिका ऐसे समय में और अधिक बढ़ जाती है। क्या है मूलभूत साक्षरता? मूलभूत साक्षरता को मोटे तौर पर एक बच्चे की बुनियादी पाठ पढ़ने और आधारभूत गणित के सवालों (जैसे- जोड़ और घटाव) को हल करने की उसकी क्षमता के रूप में संकल्पित किया गया है। मूलभूत साक्षरता के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि पढ़ने-लिखने और संख्याओं के साथ बुनियादी क्रियाएँ कर सकने की क्षमता भविष्य की सभी स्कूली शिक्षा और आजीवन सीखने हेतु एक आवश्यक आधार तथा अनिवार्य शर्त है। ‘ग्रेड 3 स्तर पर बच्चों के लिये फाउंडेशनल लर्निंग स्टडी’ विभिन्न भाषाओं में समझ विकसित करने के साथ पढ़ सकने की उनकी क्षमता के लिये मानक स्थापित स्थापित करने में सक्षम होगी। यह एक निश्चित गति, सटीकता और समझ के साथ आयु-उपयुक्त पाठ (ज्ञात और अज्ञात पाठ दोनों) पढ़ सकने की क्षमता के साथ-साथ मूलभूत संख्यात्मक कौशल का आकलन करेगा। क्या है दुनिया में मूलभूत साक्षरता का हाल ? विश्व बैंक के अनुसार हाल के वर्षों में, यह स्पष्ट हो गया है कि दुनिया भर में कई बच्चे कुशलता से पढ़ना नहीं सीख रहे हैं। भले ही अधिकांश बच्चे स्कूल में हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा मौलिक कौशल हासिल नहीं कर रहा है। इसके अलावा, 260 मिलियन बच्चे स्कूल भी नहीं जाते हैं। यह एक सीखने के संकट का अग्रणी किनारा है जो मानव पूंजी के निर्माण और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के देशों के प्रयासों को खतरे में डालता है। विश्व बैंक और यूनेस्को के सांख्यिकी संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक उपाय का उपयोग करते हुए यह निर्धारित किया गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 53 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक विद्यालय के अंत तक एक साधारण कहानी को पढ़ और समझ नहीं सकते हैं। गरीब देशों में यह स्तर 80 प्रतिशत तक है। निरक्षरता का ऐसा उच्च स्तर एक प्रारंभिक चेतावनी का संकेत है कि सभी वैश्विक शैक्षिक लक्ष्य और अन्य संबंधित सतत विकास लक्ष्य खतरे में हैं। एसडीजी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीखने की गरीबी को कम करने में प्रगति बहुत धीमी है: सुधार की वर्तमान दर पर, 2030 में लगभग 43% बच्चे अभी भी सीखने में गरीब होंगे। भले ही देश इस शताब्दी में अब तक की सबसे तेज दर से अपनी सीखने की गरीबी को कम करते हैं, लेकिन इसे समाप्त करने का लक्ष्य 2030 तक प्राप्त नहीं किया जा सकेगा। G20 के लक्ष्य पाने में मार्गदर्शक नई शिक्षा नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ‘तत्काल राष्ट्रीय मिशन’ के रूप में सभी बच्चों के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) की प्राप्ति को प्राथमिकता देती है। शिक्षा मंत्रालय के ‘बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता हेतु राष्ट्रीय पहल- निपुण’ (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) भारत मिशन 2011 में इसी प्रकार के दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। पढ़ने की प्रवीणता या अंकगणितीय कौशल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि सीखने या लर्निंग को केवल खंडों या अंतराल में पढ़ना तथा अंकगणितीय कौशल की महारत के रूप में चित्रों के द्वारा देनकर सीखना अन्य समग्र घटकों की अनदेखी और कल्पना शक्ति की कमी को प्रकट करेगा। सभी तक पहुंच,समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देने और जी 20 एजुकेशन वर्किंग ग्रुप के साझा दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए भारत की मार्गदर्शक है। भारत बचपन की देखभाल और प्रारंभिक शिक्षा को औपचारिक रूप देने, विकलांग बच्चों का समर्थन करने, डिजिटल और मल्टी-मॉडल सीखने को बढ़ावा देने, लचीले प्रवेश-निकास मार्ग, कौशल के साथ शिक्षा को एकीकृत करने पर विशेष जोर दे रहा है, जो सीखने के परिणामों में सुधार का जरिया बनी है। भारत अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से दूसरे सदस्य देशों के साथ मिलकर इस समस्या के समाधान हेतु कार्य करेगा।